
खत तो बचपन मे लिखा करते थे ,
वो अंतर्देशीय, पोस्टकार्ड भेजा करते थे,
होते थे उसमें जज़्बात, होता था उसमें अपनापन,
सन्दूक मे, अलमारी मे, किताबों मे, उन यादों को सजोंह के रखते थे,
इंतज़ार करते थे हफ्तों, महीनों, एक जवाब का,
हर सुबह डाकिया को जाता हुआ देखते,
इस उम्मीद मे, आज ये मेरे घर पैगाम लेकर आयेगा,
फुरसत के पल मे, फिर से उन यादों को जी लिया करते थे,
खत तो बचपन मे लिखा करते थे ,
वो अंतर्देशीय, पोस्टकार्ड भेजा करते थे,
आज भी खत लिखते हैं,
पर अल्फाज़ों को कहने का ज़रिया बदल गया है,
कंप्यूटर, मोबाइल के परदों मे गुम हो गया है,
अल्फाज़ अब अपनी मंज़िल रौशनी के तेज़ रफ्तार से पहुँच जाते हैं,
खत तो बचपन मे लिखा करते थे ,
वो अंतर्देशीय, पोस्टकार्ड भेजा करते थे,
पर खत से जो दिल का राब्ता था, वो कहीं खो गया है,
वो भीनी सी खत की खुशबू विलुप्त गई है,
घर के कोने से उनका बसेरा अब उजड़ गया है,
खत तो बचपन मे लिखा करते थे ,
वो अंतर्देशीय, पोस्टकार्ड भेजा करते थे…
TheDesiGypsy.com